'पगलैट' के चार साल पूरे: सान्या मल्होत्रा का दमदार प्रदर्शन आज भी उनके करियर की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के रूप में है कायम
सान्या मल्होत्रा ने हमेशा ऐसी भूमिकाएँ चुनी हैं जो परंपराओं को चुनौती देती हैं और सार्थक चर्चाओं को जन्म देती हैं। ‘पगलैट’ अपनी चौथी वर्षगांठ मना रहा है, और यह समीक्षकों द्वारा सराही गई फिल्म आज भी इस बात का प्रमाण है कि सान्या हर किरदार में गहराई और प्रामाणिकता लाने में कितनी सक्षम हैं। उमेश बिष्ट द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने न केवल शोक और दुःख को लेकर पारंपरिक धारणाओं को तोड़ा बल्कि सान्या को अपनी पीढ़ी की सबसे प्रभावशाली अभिनेत्रियों में स्थापित कर दिया।
एक बेहतरीन कलाकारों की टोली के बीच, सान्या ने फिल्म की आत्मा के रूप में अपनी अलग छाप छोड़ी। उन्होंने संध्या के रूप में एक संवेदनशील और प्रभावशाली प्रदर्शन दिया—एक ऐसी युवा विधवा जो अपने नुकसान, विश्वासघात और आत्म-खोज की जटिल राह से गुजर रही है। हमारे समाज में जहाँ महिलाओं को अक्सर भावनात्मक रूप से कमजोर समझा जाता है, वहीं ‘पगलैट’ ने इस धारणा को बदलते हुए ताकत, हिम्मत और आत्म-मुक्ति की एक नई परिभाषा गढ़ी। यह फिल्म केवल शोक की परिभाषा को ही नहीं, बल्कि बॉलीवुड में महिला प्रधान किरदारों को गढ़ने के तरीके को भी पुनर्परिभाषित करती है।
‘पगलैट’ के बाद सान्या मल्होत्रा का सफर बेहद प्रभावशाली रहा है। उनकी हालिया फिल्म 'मिसेज' ने एक बार फिर यह साबित किया कि वह जटिल कहानियों को सहजता और गहराई के साथ प्रस्तुत करने में माहिर हैं। आने वाले प्रोजेक्ट्स, जैसे कि सनी संसकारी की तुलसी कुमारी (धर्मा प्रोडक्शंस) और अनुराग कश्यप व बॉबी देओल के साथ उनका रोमांचक सहयोग, इस बात का संकेत देते हैं कि सान्या लगातार अपनी सीमाओं को आगे बढ़ा रही हैं और भारतीय सिनेमा में सबसे बेखौफ व रोमांचक अभिनेत्रियों में से एक बनी हुई हैं।
'पगलैट' के चार साल पूरे होने पर भी यह एक मील का पत्थर बना हुआ है - जिसने न केवल सान्या मल्होत्रा के करियर को परिभाषित किया, बल्कि अपने शक्तिशाली और अविस्मरणीय प्रदर्शन के माध्यम से भारतीय कहानी कहने में महिलाओं के चित्रण को एक नए आयाम में स्थापित करने वाली उनकी यादगार और दमदार प्रस्तुति का प्रतीक भी है।